मुक्ति

किस मुक्ति की बात करे है तू
जब मन ही नहीं मुक्त संसार से
कहाँ जाए काशी , काबा
जब फँसा हो मन इस मायाजाल में …

मुक्त कभी नहीं ,तू हो सकता
अगर त्याग दिया यह वेश भी
वरना कोइ संत , सूफी ना कहता
जो है, बस यही सही …
घाट घाट का पानी पीया
फिर भी ना जाना यह बात अभी ?
मरने से मुक्ति नहीं मिलती, ऐ राहगीर .
जब तक ना बने ,उन्मुक्त,तू ही !

 

 

 

4 विचार “मुक्ति&rdquo पर;

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