कोमल कमल की पंखुरियों सा निर्मल,
खिलता ,प्रफुल्लित मन यह चितवन,
धरा की रेखाओं के आधीन ,
फिर भी उन्मुक्त स्वाधीन स्वच्छ दर्पण
सदेव खिलता खिलखिलाता ,
अपने मन मोहक गीत सुनाता,
लुभावना सा यह कमल ,
सुवासित रहे वातारण .
कभी जो तूफ़ान में झुक के,
मुड़ जाए इसके डंठल ,
अगले पल अपने को संभाले,
खडा रहे यह मनभावन .
ऐसे निर्मल मन सा कोई हो जो कमल,
जीवन की डोर से फिर न टूटे ….
किसी की साहस का बंधन।
Reblogged this on soumyav and commented:
The pure pristine one!
You have written beautiful poems in Hindi! I thoroughly enjoyed the ones that I read.
Thank you very much for your visit here and for liking them.