ना रोकना इस जज्बे को जो निकला है अपना रूतबा लिए,
आत्मसम्मान के इस लडाई में रख अपने शीश उठाये हुए,
कभी कभी ही ऐसे जोश में रहता है इंसान यहाँ,
बुझने न देना इस आग को जबतक न हो इन्साफ यहाँ .
बदल के रखेंगे हम हवाओं की दिशा जो हमसे टकराएगी,
देश के लिए मरना जाने तो क्या अपना हक न मांग पाएंगी ,
जागो सोये हुए लोगों ,घर तुम्हारा भी जल जाएगा ,
अगर न मोड़ा इस आंधी को तो सर्वस्व ही मिट जाएगा।
आँखें खोलो ,मन से सोचो ,क्या ऐसी दुनिया हम चाहेंगे,
मनुष्य जहाँ बना जानवर ,जंगल राज में खुला हुआ,
शर्म गृना से झुक गया सर … ऐसा काम न अब हो,
वर्ना महाभारत भी यहीं हुआ था … भूलना मत ये दोस्तों।
Reblogged this on soumyav and commented:
keep the fire ablaze!
I guess this one is in the context of recent act of Obscenity in delhi…
Yes Priyash! very true! The incident has left an deep impression within
Yeah it is such a shame… 😦
A VERY NICE COMPOSITION.