किसी भी देश की उन्नति वहां बसे लोगों की आर्थिक , सामाजिक एवं मानसिक स्थिति से प्रभावित होती है।
पश्चिम के देश अपनी सुदृद आर्थिक व्यवस्था के लिए मशहूर एवं परिपूर्ण है किन्तु वहां भी लोगों की मानसिक अवस्था कुछ उलझनों में सिमटी हुई है . और ऐसे स्थिति में वहां के समाज में हमे कई प्रकार के विशाक्त्पूर्ण एवं अमानवीय घटनाएँ देखने को मिलती है।
भारत प्राचीनकाल से अपने संस्कारों के कारण चर्चा में रहा है।
पश्चिम देशो का समाज हमारे यहाँ ही कारणों को ढूढ़ ता आया है हमारे इतने विषम परिस्थितियों में भी न हार मानने का गुण और कठिन समय पर भी खुश होने का एहसास।
किन्तु आज के दौर मे अपने देश हो रहे अमानवीय आचरण से देश ही नहीं वरन संपूर्ण मानव जाती शर्मसार है .
इस प्रकार के विभत्स विचार और ऐसी हरकत ने हमारे शीश को ग्लानी से झुक दिया है!
समय रहते अगर हमारे प्रणाली में कुछ सुधार हो जाए ,लोगों की मानसिक सोच को अगर नयी दिशा मिले तो इस देश की उन्नति की बातें करने में कोई अर्थ है,वर्ना,प्रगति सिर्फ नाम मात्र की रह जायेगी .
ना चाहते हुए इस देश के वो लोग जो अपनी आवाज़ एक कर के कुछ करना चाहते है यूँ ही वातावरण में मिल जायेंगे।
अर्थशास्त्र , राजनीती सब धरे धरे रहेंगे अगर मनुष्यता अपना अस्तित्व खो देगी।
इस मनुष्यता की परिभाषा जो हमने सारे विश्व को सिखाई है,यहाँ की आध्यात्मिकता जिससे सारा विश्व प्रभावित है, उसी भूमि के लोगों के अगर ऐसे भयानक विचार राज करते हैं, अगर यहाँ के लोगो की विचारधारा इतनी तुच्छ एवं संकीर्ण है ,तो ईश्वर को भी अपने इश्वरत्व पर शर्मसार होना पड़ेगा!
बहुत ही गहरी बात
dhanyavaad
Thought provoking.