सुप्रभात !

बैठे है यूँ राह् तकतें हुए समय के झरोखे से
कब होगा सूर्य का आगमन इस अन्धेरे जीवन में
एक किरण से भी हो जायेगा वातावरण यह प्रज्वलित
एक ज्योति ही काफ़ी है जलते रहने के लिए
जब उम्मीद हो गयी हो ओझल एवम्‌ राहहीन !

वक्त के घेरे से बच ना सका कोइ
जो बनाकर राजा राज करे उसे भी यह लेता है जीत
इस समय के पन्नो में कई जाते है बीत यह दिन
सारांश उस का वही पाये जो रहता है राह् पर अडिग

एक आशा में देखे कोई स्वप्न
जिसमें हो जाए पूरे चित्रों के रंग
अलग अलग कलम उठाता हर
प्रयत्न करे निरंतर !

आखिरकार वह क्षण आए जिसका करे वह इंतज़ार
समय के सुप्रभात का करे वह आदर सम्मान
ऐसे भोर कि बेला का जाने वह मूल्य अनमोल
जिसकी सुंदर आभा से जीवन हो जाए आत्मविभोर!

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निशा काल

नील गगन के साये में खिलते हैं फुल हज़ार
कई ख़ुशबू लिए चमन में
कई खिलाये चहुं ओर बहार!

जब निशा काल में चमके अंबर
धरती पर छाये  वसंत बहार
लहरें गाये स्वर लहिरि
छेड़े सुर जैसे मल्हार !

कई गीत सुनाये झींगुर
जब अंधकार में डूबा संसार
मदमस्त हो झूमे प्रकृति के रूप
निशांत स्वर्ग सा दिखे यह दृश्य
अमुल्य ,अतुल्य जैसे कोइ साक्षात्कार !

नई सुबह

सुलगते हुए आसमान में झुलस गए कई राज़,
छुपा कर अपने आहोश में हो गए गुमनाम,
तारों को भी ना ख़बर हुइ,क्यूँ है रात यूँ चुप चाप,
हवा धीमे से आकर बोली कब तक जलोगे
ऐ चाँद ! सितारों से अब है बिछड़ना !
होने वाली है अब नई सुबह!

PHOTOCREDITwww.bhmpics.com

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