कन्हैया

गोकुल में भयो बाल काल
ग्वाल बाल बने सखा
बांसुरी की धुन में
झूमे नन्द संग गोपियाँ

वृन्दावन की कुञ्ज गली में
राधा करे श्रृंगार
अपने आराध्य के रंग में
रंग  लियो अपना संसार

द्वारिका जो गए कन्हैया
मुड़ के देखो न एक बार
राधा ,संग गोपियों
पलके बिछाये हैं
यमुना पार!

सुनाके कान्हा एक धुन अनोखी
करदो सबके मन को शांत
झूमने लगे फिर से अम्बर
ऐसे राग को छेडो आज!

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बांसुरी

मेरे मन की बांसुरी तू बन गयी
धुन यूँ बनी जैसे झूमे गगन धरती
गाये तराने दिल की आवाज़ से
मिट गए फ़ासले मिलों दूर् दो जहाँ के!

 

यह कौन सी वाणी बोले है पपीहा
आम्रपाली झूमे , लहरें मदमस्त हवा
बांके की बांसुरी के अद्र्युश्य फसाने
जाने किधर बरसनेवाले है यह अमृत के बहाने!