बांसुरी मेरे मन की बांसुरी तू बन गयी धुन यूँ बनी जैसे झूमे गगन धरती गाये तराने दिल की आवाज़ से मिट गए फ़ासले मिलों दूर् दो जहाँ के! यह कौन सी वाणी बोले है पपीहा आम्रपाली झूमे , लहरें मदमस्त हवा बांके की बांसुरी के अद्र्युश्य फसाने जाने किधर बरसनेवाले है यह अमृत के बहाने! Share this:TwitterFacebookEmailLike this:पसंद करें लोड हो रहा है... Related
welcomeeeeeeeeeeeeeeeeeee back Soumya 🙂 glad to see u
Thanks Pratiksha for such a warm welcome! 🙂
pleasure is all mine!!!! 🙂