आग बुझती नहीं यह आग जो, जलती है बन के अंगार दिल का चिलमन जैसे गाता हो मोहब्बत के पैग़ाम बनके धुआँ जब रुख़सत हुए , हम इस महफिल से रंग उनके सुरमे का बहने लगा क्यूँ ज़ार ज़ार “ Share this:TwitterFacebookEmailLike this:पसंद करें लोड हो रहा है... Related
bohat khoob, very nice…
Thank you very much