ढलता है दिन सुर्ख आसमान में
वह घना अँधेरा डूब गया अब रात के स्याही में
इस कलम की बात अभी अधूरी है
कुछ पैगाम अभी लिखना ज़रूरी है
जलती शमा ने बाँध लिया वह समां
पर दिल की कलम से वह बात लिखनी अभी बाकी है.
आग़ाज़ हो चला एक नए सफर का
उस नए मौसम की हवा सुहानी है
फिर भी यह मन यूँ ही खड़ा मझधार
उसके मोहब्बत की किस्मत लिखनी अभी बाकी है