बहाना हमगुजरते दौर के साये में खड़े थे कभी अपना वजूद कभी आइना झूठ निकाला ! कब्र तक जाते ना जाने कितने ऐब जानेंगे हम , ख़ुद को जाना तो तो जाना सब धोखा है ! बस यूँ ही रहतीं है इक नज्म होंठों पे लेकिन तुमसे मिलना … यही जीने का बहाना है Share this:TwitterFacebookEmailLike this:पसंद करें लोड हो रहा है... Related