) चित्त की सुनो रे मनवा
चित्त की सुनो
बाहर घोर अंध्काल
संभल कर चलो …
राह् कई है, अनजानी सी
देख् पग धरो, रे मनवा
चित्त की सुनो…
अज्ञान- के कारे बादल
गरजे बरसें बिन कोई मौसम
आपने मन की लौ को जगा कर
रखना तू हर पल
रे मनवा ,चित्त की सुनो…
ऐसे चित्त का चित्त रमाये ध्यान करे हरि का
भव्सागर पार हो जाए
कलयुग में
जगा कर रोम रोम और प्राण
रे मनवा ,
चित्त की सुनो हर बार
great work keep doing
Thank you