“आओ चांदनी तुम्हे चुरा लूँ
उस चाँद से,
जो पढ़ता है कसीदे रात के अँधेरे में
अपनी मोहब्बत के
गुलाब की उन बंद पंखुरियों से
वह भीनी खुशबु को उड़ा लूँ
हवा के झोंके संग
लहरा कर तुम्हारे नीले दुपट्टे को
नदी तालाब सा बहा लूँ
संग पंछी उड़ जाऊं ऊँचे पर्वत पर
और फ़िज़ा में तुम्हे
घोल दूँ इत्र बन “
कहता है आज बरामदे
पर खड़ा उगता सूरज
भीनी भीनी रौशनी में
मुस्कुराता सूरज