क्या कहे ऐसे इश्क़ का
असर उसको ज़रा नहीं होता
कर दी फना हमने अपनी रूह
फिर भी असर ज़रा नहीं होता
हम अर्ज़ करते हैं महफ़िलो में
ग़ज़ल उसके नाम की
कभी सूफियाना कलम से
कभी रूमानी रंग की
पल पल सुलगती साँसों में
ज़िक्र उसका ही रहता है
वह सुनकर भी अनसुना कर दे
तो चाँद हैरान नहीं होता
क्या कहे ऐसे इश्क़ का
असर उसको ज़रा नहीं होता
तो चाँद हैरान नहीं होता
क्या कहे ऐसे इश्क़ का
असर उसको ज़रा नहीं होता
उसके लब्ज़ नहीं कहते जुबां से
आँखों की ज़बानी कह जाते हैं
किस्से दिल और दीदार के
दबा कर चिंगारी
दबा कर चिंगारी
वह राख में आग ढूंढते है
कह दे कोई उसे
जज़्बात फरेबी नहीं होते
क्या कहे ऐसे इश्क़ का
असर उसको ज़रा नहीं होता
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soumya vilekar
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