चंद पल सुकून के खोजता रहा उम्र भर
कभी अपने पैरों के निशाँ पोंछ कर
कभी परिंदे सी उड़ान भर कर
दूर दराज़ जंगलों में
बड़ी बड़ी इमारतों के मंज़िलों पर
खोती गयी मंज़िल अपनी
इस पशोपेश में
भूल गया
झाँकना अपने ही भीतर
ज़िन्दगी के घुमते पहिये संग
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मेरे दिल को चिर कर
वह सोचते रहे
यूँ ही रात भर
पर हम ना
इससे बेखबर
लम्हा दर लम्हा गुज़रे
जो यह पहर
अलफ़ाज़ उनके जाए
मेरे दिल को चिर कर
हिज्र
अर्ज़ मेरी उसने ना सुनी,
होगा वो कुछ संगदिल सा,
एक हिज्र की मोहलत माँगी थी,
रूखसत हुई जब
उसके दर से यह ज़िंदगी।
-©Soumya
आओ चांदनी तुम्हे चुरा लूँ
“आओ चांदनी तुम्हे चुरा लूँ
उस चाँद से,
जो पढ़ता है कसीदे रात के अँधेरे में
अपनी मोहब्बत के
गुलाब की उन बंद पंखुरियों से
वह भीनी खुशबु को उड़ा लूँ
हवा के झोंके संग
लहरा कर तुम्हारे नीले दुपट्टे को
नदी तालाब सा बहा लूँ
संग पंछी उड़ जाऊं ऊँचे पर्वत पर
और फ़िज़ा में तुम्हे
घोल दूँ इत्र बन “
कहता है आज बरामदे
पर खड़ा उगता सूरज
भीनी भीनी रौशनी में
मुस्कुराता सूरज
एक ख्वाब है
एक ख्वाब है :
एक पल का
जब साथ हो आपका
किसी ठंड सी ठिठुरती रात में
बातों का फलसफा लिए
कुछ हम कहे
कुछ आप कहे
चाँद जब दिखे आसमान में…
एक पल जिये
क्या कभी यह दिन आएगा
क्या मन एक पल जी पायेगा
वक्त के तरकश से
क्या कभी यह तीर निकाल पायेगा?
मौसम की इस अदला बदली में
यूँ तो: हमने कभी सोचा नहीं
कि इस क़दर आप बसते हैं ज़हन में
पल भर की खामोशी भी ना अब
सहती इस मौसम में…
मौसम की इस अदला बदली में
कई रंग फिज़ा ने बदल दिए
कुछ पुराने पत्तों से झड़ गए
कुछ नए फूलों की खुश्बू से खिल गए…
देखे अब क्या है
इस मौसम की ख्वाइश
कोई
मुस्कुराहट या फिर कोई नई नुमाइश
जिंदगी के मौसम कितने अजीब
कभी मौसम-ए – हिज्र
कभी मौसम – ए- दीद !
उड़ान
उस किवाड़ के खुलते ही मानो
जिंदगी बेगैरत हो गयी
तिजोरी में बंद थी अबतलक
अब खुली किताब बन गयी
अकसर चार दीवारों
में कैद इनसान रेह्ते हैं
परिंदों कि माने
तो ख्वाइशें अब बेहिसाब हो गयी
उस नीले आसमान ओ देख्
अब मन बेकाबू हो चला
ऊँची उड़ान कि
अब फितरत हो गयी
महल प्यार का
चिराग दिल के जला के हम
राह् तके चारों पहर
फिर एक लम्हा बीत गया
एक ज़माना गुजर गया …
हम यूँ ही शमा जलाते रहे
दामन यूँ ही जलता गया…
तुम्हे वक्त का ना कभी तकाजा हुआ
ना तुमने खोजे वो पल यहाँ
कि रेशम से अश्कों में बह गया
आलीशान यह महल प्यार का !!!