किस मिट्टी के हम बने
कैसी हवा चल रही है आजकल
इनसान होना भूल गए
पल पल झलकता है
इस दुनिया में
किसी की हैवानियत का बल…
उस पेड़ से लटका हुआ वह सावन का झूला
आज दिखता है, वहाँ किसी की हँसी का फन्दा
चुल्बुल सी , जो उछलती थी
उसका नन्हा बचपन सिमटा ….
क्या बात हुई, ना जाने क्यूँ
दिखता नहीं अभी यहाँ सवेरा
बस सूरज मानो ढल गया
गुमनाम अन्धेरे में ना जाने कहाँ…
आजकल ना जाने कौन सी
हवा चली है यहाँ
इनसान भूल गया
बनना इनसान.