जो सब कुछ कह दूँ
तो क्या मज़ा जीने में
समझ सको तो सुन लो
बिन कहे
उन बूंदों की सरगम
बहती है जो ख़ामोशी से
हलके से
गुनगुनाते हुए
बरसात के कुछ नग़मे
किस्से तेरी और मेरी कहानी के !
©Soumya
जो सब कुछ कह दूँ
तो क्या मज़ा जीने में
समझ सको तो सुन लो
बिन कहे
उन बूंदों की सरगम
बहती है जो ख़ामोशी से
हलके से
गुनगुनाते हुए
बरसात के कुछ नग़मे
किस्से तेरी और मेरी कहानी के !
©Soumya
अर्ज़ मेरी उसने ना सुनी,
होगा वो कुछ संगदिल सा,
एक हिज्र की मोहलत माँगी थी,
रूखसत हुई जब
उसके दर से यह ज़िंदगी।
-©Soumya
क्या कहे ऐसे इश्क़ का
असर उसको ज़रा नहीं होता
कर दी फना हमने अपनी रूह
फिर भी असर ज़रा नहीं होता
हम अर्ज़ करते हैं महफ़िलो में
ग़ज़ल उसके नाम की
कभी सूफियाना कलम से
कभी रूमानी रंग की
उसके लब्ज़ नहीं कहते जुबां से
क्या कहे ऐसे इश्क़ का
असर उसको ज़रा नहीं होता
![]() |
soumya vilekar
about.me/soumya.vilekar
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इस दर्द ए दिल की दवा दे जा
तेरा चाँद सा मुखड़ा हमे दिखा जा
कल अमावास की रात थी
अंधकार में लिपटी , हर बात थी
गम की स्याही से लिखी
एक आवाज़ थी
कल आसमान में आएगा वो
धरती पर तुम , अंबर में वो
फिर भी …
उजाले की किरण दिखा जा
तेरा चाँद सा मुखड़ा दिखा जा
…
आज तो दीदार करा जा
तेरा चाँद सा मुखड़ा दिखा जा
आदत सी हो गयी है हमें
तेरे दीदार की…
क्या हुआ ग़र मिलते हो हमसे तुम
हर रात, चाँद की सतह पर …
मिलों दूर् की दूरियाँ दिखती नहीं
हमदम ,
कि किरणों ने
बिछायि चादर …
चलो चलें चाँद पर …
ढल गया सूरज , आज शाम तन्हा है
कल रात कि चाँदनी भी मुझसे कुछ खफा है
पहलू में वो जो आए , सितारों का नगमा लिए
हमने कर लिया किनारा, उनसे नजर मोड़ के
Copyright@SoumyaV2015
हमगुजरते दौर के साये में खड़े थे
कभी अपना वजूद
कभी आइना
झूठ निकाला !
कब्र तक जाते ना जाने कितने
ऐब जानेंगे हम ,
ख़ुद को जाना तो
तो जाना सब धोखा है !
बस यूँ ही रहतीं है
इक नज्म होंठों पे लेकिन
तुमसे मिलना …
यही जीने का बहाना है
किस मिट्टी के हम बने
कैसी हवा चल रही है आजकल
इनसान होना भूल गए
पल पल झलकता है
इस दुनिया में
किसी की हैवानियत का बल…
उस पेड़ से लटका हुआ वह सावन का झूला
आज दिखता है, वहाँ किसी की हँसी का फन्दा
चुल्बुल सी , जो उछलती थी
उसका नन्हा बचपन सिमटा ….
क्या बात हुई, ना जाने क्यूँ
दिखता नहीं अभी यहाँ सवेरा
बस सूरज मानो ढल गया
गुमनाम अन्धेरे में ना जाने कहाँ…
आजकल ना जाने कौन सी
हवा चली है यहाँ
इनसान भूल गया
बनना इनसान.
यादों के झरोखे में
सिमटकर हम ले चले
चंद किस्से प्यार भरे
एक सुनेहरा दिन,
कुछ
चाँदनी रातें
वह गीली रेत में
चलना …तारे गिन गिन…
किस पल आए फिर ऐसा समा
लहरों में छुपा लूँ अपना जहाँ
चंद मामूली बातें
कुछ अनकहे किस्से …
मुद्दत से राह् देखे यह मन
कब फिर शुरु होगा
मिलों पुराना यह स़फर
…
अधूरा जो रह गया था
किसी मोड़ पर
आओ चले फिर से
उसी यादों के झरोके पर …
घने बादलों के साये मँडराते है आज
चहुं ओर छाया है अन्धेरा
ना कोइ रौशनी , ना कोई आस्
फिर भी चला है यह मन अकेला.
ना डरे यह काले साये से
ना छुपा सके इसे कोहरा
अपनी ही लौ से रोशन करे यह दुनिया
चले अपनी डगर…
हो अडिग, फिर भी अकेला …
ना झुकता है यह मन किसी तूफान में
ना टूटे होंसला इसका कभी कही से
एक तिनके को भी अपनी उम्मीद बना ले…
ऐसा है विश्वास बांवरे मन का…
ना थके वो , ना रुके वो
मंज़िल है दूर् , दूर् है सवेरा
चला जाए ऐसे, पथ पर निरंतर
ऐ मन , तू है चिरायु …