खोज

चंद पल सुकून के खोजता रहा उम्र भर
कभी अपने पैरों के निशाँ पोंछ कर
कभी परिंदे सी उड़ान भर कर
दूर दराज़ जंगलों में
बड़ी बड़ी इमारतों के मंज़िलों पर
खोती गयी मंज़िल अपनी
इस पशोपेश में
भूल गया
झाँकना अपने ही भीतर
ज़िन्दगी के घुमते पहिये संग

Soumya

जुबां हमारी ना समझ सका है कोई
आँखों की गहराई
जानने की
फुर्सत किसी को नहीं

एक चाँद था ज़मीन पर

फ़लक पर जो चाँद था ,
देख् रहा था नजरें टिकाये जमीन पर
कभी बादलो के पीछे से, कभी तारों के बीच से
वो पूर्णिमा की  रात थी ,
एक चाँद आसमान पर था
एक नीचे बगीचे में ठिठुर रहा था


भूका, प्यासा तिलमिलाता
बेज़ुबान सा
अनदेखा कर गया , एक काफिला कुछ ही कदमो की  दूरी पर
जग्मगाता , टिम्टिमाता
मानो धरती पर हो रहा हो कोई
तारों का मजुम
सुगंधित फूलों के बीच
स्वादिष्ट पकवान
अर्पण हो रहे थे जो
उस आसमान के चाँद के लिए
एक चाँद था ज़मीन

पर
बस निहारता हुआ

@SoumyaV

घोंसला

आज तूफान आया था घर के बरामदे मेँ
उजड़ गया तिनकों का महल एक ही झोंके मेँ
उस चिड़िया की आवाज़ आज ना सुनायी दी
कई दिनो से
शायद
फिर से जूट गयी बेचारी सब सँवारने मेँ

बनते बिगड़ते हौंसले से बना फिर वो घोंसला
पर किसी को ना दिखा चिड़िया का वो टूटता पंख नीला
अब कैसे वो उड़े नील गगन में
जहाँ बसते थे उसके अरमान !
सबर का इम्तिहान उसने भी दिया
बचा लिया घरौंदा…
मगर कुर्बान ख़ुद को किया

चलें चाँद पर

आदत सी  हो गयी है हमें
तेरे दीदार की…
क्या हुआ ग़र मिलते हो हमसे तुम
हर रात, चाँद की सतह पर …
मिलों दूर् की  दूरियाँ दिखती नहीं
हमदम ,

कि किरणों ने
बिछायि चादर …
चलो चलें चाँद पर …