खोज

चंद पल सुकून के खोजता रहा उम्र भर
कभी अपने पैरों के निशाँ पोंछ कर
कभी परिंदे सी उड़ान भर कर
दूर दराज़ जंगलों में
बड़ी बड़ी इमारतों के मंज़िलों पर
खोती गयी मंज़िल अपनी
इस पशोपेश में
भूल गया
झाँकना अपने ही भीतर
ज़िन्दगी के घुमते पहिये संग

Soumya

कैसे कहे चाँद से

कैसे कहे चाँद से

रात की चांदनी उससे  अलग नहीं

चाहे हो दिन या सितारों का मज़मा

रौशनी रूह की

जलती है अंदर ही

 

©Soumya

यह दीवारें

क्या लिखा है
दीवारों और दरख्तों पर
कुछ किस्से
कुछ सबूत
उस पुराने इतिहास की
जिसकी न मैं गवाह ना तुम

रंग उतरे इन स्तंभों पर
कई कहानियाँ जागती
इधर उधर
रात के पहर
अनायास ही नज़र पड़ी जब उन पर
सोचने लगा मन
क्या कहना चाहती है
यह दीवारें सालों से खड़ी
जीती जागती ,
मूक दर्शक बनकर !

एक ख्वाब है

एक ख्वाब है :
एक पल का
जब साथ हो आपका
किसी ठंड सी  ठिठुरती रात में
बातों का फलसफा लिए
कुछ हम कहे
कुछ आप कहे
चाँद जब दिखे आसमान में…
एक पल जिये
क्या कभी यह दिन आएगा
क्या  मन एक पल  जी पायेगा
वक्त के तरकश  से
क्या कभी यह तीर निकाल पायेगा?

चलें चाँद पर

आदत सी  हो गयी है हमें
तेरे दीदार की…
क्या हुआ ग़र मिलते हो हमसे तुम
हर रात, चाँद की सतह पर …
मिलों दूर् की  दूरियाँ दिखती नहीं
हमदम ,

कि किरणों ने
बिछायि चादर …
चलो चलें चाँद पर …