एक ख्वाब है :
एक पल का
जब साथ हो आपका
किसी ठंड सी ठिठुरती रात में
बातों का फलसफा लिए
कुछ हम कहे
कुछ आप कहे
चाँद जब दिखे आसमान में…
एक पल जिये
क्या कभी यह दिन आएगा
क्या मन एक पल जी पायेगा
वक्त के तरकश से
क्या कभी यह तीर निकाल पायेगा?
poetry hindi
घोंसला
आज तूफान आया था घर के बरामदे मेँ
उजड़ गया तिनकों का महल एक ही झोंके मेँ
उस चिड़िया की आवाज़ आज ना सुनायी दी
कई दिनो से
शायद
फिर से जूट गयी बेचारी सब सँवारने मेँ
बनते बिगड़ते हौंसले से बना फिर वो घोंसला
पर किसी को ना दिखा चिड़िया का वो टूटता पंख नीला
अब कैसे वो उड़े नील गगन में
जहाँ बसते थे उसके अरमान !
सबर का इम्तिहान उसने भी दिया
बचा लिया घरौंदा…
मगर कुर्बान ख़ुद को किया
महल प्यार का
चिराग दिल के जला के हम
राह् तके चारों पहर
फिर एक लम्हा बीत गया
एक ज़माना गुजर गया …
हम यूँ ही शमा जलाते रहे
दामन यूँ ही जलता गया…
तुम्हे वक्त का ना कभी तकाजा हुआ
ना तुमने खोजे वो पल यहाँ
कि रेशम से अश्कों में बह गया
आलीशान यह महल प्यार का !!!
चलें चाँद पर
आदत सी हो गयी है हमें
तेरे दीदार की…
क्या हुआ ग़र मिलते हो हमसे तुम
हर रात, चाँद की सतह पर …
मिलों दूर् की दूरियाँ दिखती नहीं
हमदम ,
कि किरणों ने
बिछायि चादर …
चलो चलें चाँद पर …
बहाना
हमगुजरते दौर के साये में खड़े थे
कभी अपना वजूद
कभी आइना
झूठ निकाला !
कब्र तक जाते ना जाने कितने
ऐब जानेंगे हम ,
ख़ुद को जाना तो
तो जाना सब धोखा है !
बस यूँ ही रहतीं है
इक नज्म होंठों पे लेकिन
तुमसे मिलना …
यही जीने का बहाना है
कैसी हवा ?
किस मिट्टी के हम बने
कैसी हवा चल रही है आजकल
इनसान होना भूल गए
पल पल झलकता है
इस दुनिया में
किसी की हैवानियत का बल…
उस पेड़ से लटका हुआ वह सावन का झूला
आज दिखता है, वहाँ किसी की हँसी का फन्दा
चुल्बुल सी , जो उछलती थी
उसका नन्हा बचपन सिमटा ….
क्या बात हुई, ना जाने क्यूँ
दिखता नहीं अभी यहाँ सवेरा
बस सूरज मानो ढल गया
गुमनाम अन्धेरे में ना जाने कहाँ…
आजकल ना जाने कौन सी
हवा चली है यहाँ
इनसान भूल गया
बनना इनसान.
ऐ मन , तू है चिरायु!
घने बादलों के साये मँडराते है आज
चहुं ओर छाया है अन्धेरा
ना कोइ रौशनी , ना कोई आस्
फिर भी चला है यह मन अकेला.
ना डरे यह काले साये से
ना छुपा सके इसे कोहरा
अपनी ही लौ से रोशन करे यह दुनिया
चले अपनी डगर…
हो अडिग, फिर भी अकेला …
ना झुकता है यह मन किसी तूफान में
ना टूटे होंसला इसका कभी कही से
एक तिनके को भी अपनी उम्मीद बना ले…
ऐसा है विश्वास बांवरे मन का…
ना थके वो , ना रुके वो
मंज़िल है दूर् , दूर् है सवेरा
चला जाए ऐसे, पथ पर निरंतर
ऐ मन , तू है चिरायु …
अभी बाकी है
वह घना अँधेरा डूब गया अब रात के स्याही में
इस कलम की बात अभी अधूरी है
कुछ पैगाम अभी लिखना ज़रूरी है
जलती शमा ने बाँध लिया वह समां
खामोशी
एक ज़ुबान हम जानते हैं
खामोशी है जिसका नाम
नजरें करे गुस्ताखिया
चाँद फिर भी दिखे अनजान
छुपकर बादलों में पलक झपकाये बार बार
कभी ओस की बूँदों में छलके
कभी बारिश की बूँदों में दिखाये अपना प्यार
गुनाह
गुनाह मान कर उसने अपना रुख मोड़ लिया
हमने तो बस एक दीदार ही मांगा था!
ना मांगी थी उससे ज़िन्दगी की मोहब्बत
बस चंद लम्हों का साथ ही माँगा था
ना चांदी का महल ना सोने की चमक
हमने तो उसके इस्तकबाल का एक ही पल माँगा था
वह गए यूँ गली से गुज़र के ऐसे
हमने तो बस
उसके लहराते आँचल का झोंका ही माँगा था
गुनाह समझते है वो , सज़ा भी दी हमें
हमने तो अपनी रूह का
जलता हिस्सा माँगा था
जो बसता है उनके जिगर में प्यार से
खंजर तो हमने अपने सीने में उतारा था