बेवजह ही धड़कते है अरमान
बेवजह ही हम मुस्कुरा जाते
जब भी आता है होंठों पर नाम तेरा
जाने क्या सोच कर हम इतराते
तुम इस बात से अनजान
कोसों दूर् …
उस धुंद की चादर तले
अपने चाय के प्याले को निहारते
जिसके किनारे पर आज भी
है मौजूद
चंद निशान हमारे
बेवजह ही धड़कते है अरमान
बेवजह ही हम मुस्कुरा जाते
जब भी आता है होंठों पर नाम तेरा
जाने क्या सोच कर हम इतराते
तुम इस बात से अनजान
कोसों दूर् …
उस धुंद की चादर तले
अपने चाय के प्याले को निहारते
जिसके किनारे पर आज भी
है मौजूद
चंद निशान हमारे
Tapakti hui aasman se chand boondein pyar ki,
bhiga gayi mere aangan ko tere dil ki yeh nami,
in boondon mein mujhe bheeg jaane do kabhi,
jise dekh baarish bhi rah jaaye tham kar wahin !