devotion
रहमत !
फिक्र नहीं हमें तूफानों की,
मझधार में जो हम रुक भी गए,
हम पर अगर है रहमत उसकी ,
तो तूफानों से क्यूँ हम डरे...
झुकाकर यह शीश हम ना
करेंगे उसे शर्मिंदा
सिखाया है जिसने
तूफानों में भी जीना...
विश्वास की ज्वाला को चिंगारी दे
हम चल पड़ेंगे अपनी डगर,
रुख मोड़ लेगी हवाओं का
साहिल बन कर अपनी किस्मत !
श्रद्धा
अगर लगे अंधकारमय है पथ जीवन का,
दूर तक ना हो रोशनी का कोई निशान ,
डर ना नहीं बस चलते रहना ऐ ! इंसान
एक किरण भी ले जायेगी तुम्हे तारों के पार।
मन में रख तू विश्वास बनाये
गिर कर भी तू संभलना जाने
फिर काहे का डर सताए
इस पथ तो है वीरों के साए ..
सच्चाई की इस डगर पर
लाखों ने अपने शीश झुकाए,
अपने मंजिल की ओर बढा कर कदम
चलते जा तू यूँ ही निरंतर …
दिखेगा लक्ष्य तुझे
अगर रहे नज़र
अटल निश्चल !
अनदेखी सी शक्ति होगी ,तेरे हर कदम के तले ,
जो उठा लेगी हाथों में ,अगर कहीं कांटे मिले,
रख कर यह श्रद्धा का दीपक, हाथ में तू चला अगर ,
दूर नहीं कोई भी मंजिल, पहुंचेगा तू , सितारों के परे …
शिवरात्री
रात्रि की पावन बेला में
वातारण यह गूंज उठा,
गीत स्वयंवर शिव पार्वती के
गाये नीला अम्बर संग धरा .
शंख नाद से गूंजे धरती,
स्वर्ग में जयजयकार हुई ,
समस्त देवी देवताओं के,
उपस्थिति से आशीर्वाद की
बौछार हुई..
त्रिशूल धारी,त्रिनेत्र ,
त्रिपुंड
लगाये बैठे थे,
ध्यान मग्न में विश्व समाये.
भस्म लगाये रहते थे.
आज काल की रात्रि में,
चल कर बने है
वर ऐसे निशांत अलग…
हिमालय पुत्री की तपस्या,
हो गयी सफल,,
द्वार खड़े तीनों लोकों के
इश्वर,
हो गया आत्म विभोर मन
पार्वती संग ब्याही शिव के,
चली कैलाश पर वह
पार्वती पतेय हर हर महादेव
गाने लगे हर मनुष्य एवम देवतागण !
(PHOTOCREDIT:hariharji.blogspot.com )
घगरी
पनघट पर जब गोपियाँ नीर भरने चली,
पायल की छुन छुन से सारी धरती खिली,
देख कर उन्हें जाता देख,
कान्हा,
छिपकर ओझल हुआ कुंजन्वन के पुष्प कंदल में।
छलक छलक कर पानी छलका ,
घागरी से थोडा इधर उधर गिरता,
एक कंकरी तब यूँ लागी,
फुट गयी घगरी, गोपियाँ भागी।
बोखलायी सी ,जब वह देखे कान्हा को ,
रूठकर कर पूछे ,
” ऐसा काहे करत हो?”
यूँ हमारे काम में जाने,
कैसे कैसे उलझने देत हो!
देख गोपियों का यह रूप
मंद मुस्कुराए नन्द के पूत ,
मै तो आया इस कारण से,
कर दू हल्का तोरा बोझ ये ,
जिसे उठा कर तुम चली हो,
भूल कर अपनी राह इस वन में,
घगरी फोड़ यहाँ में सोचु,
कितने और पाप के घड़े है तोड़!
मार मार कर कंकरी जाने,
थक गया,
ये कान्हा
धोते
पाप पुण्य से!