एक चाँद था ज़मीन पर

फ़लक पर जो चाँद था ,
देख् रहा था नजरें टिकाये जमीन पर
कभी बादलो के पीछे से, कभी तारों के बीच से
वो पूर्णिमा की  रात थी ,
एक चाँद आसमान पर था
एक नीचे बगीचे में ठिठुर रहा था


भूका, प्यासा तिलमिलाता
बेज़ुबान सा
अनदेखा कर गया , एक काफिला कुछ ही कदमो की  दूरी पर
जग्मगाता , टिम्टिमाता
मानो धरती पर हो रहा हो कोई
तारों का मजुम
सुगंधित फूलों के बीच
स्वादिष्ट पकवान
अर्पण हो रहे थे जो
उस आसमान के चाँद के लिए
एक चाँद था ज़मीन

पर
बस निहारता हुआ

@SoumyaV

उम्र

अल्फाज की गहराई,
नहीं मोहताज
उम्र के दस्तावेज पर
लब्ज करते है बयान ये 
वो दर्द और किस्से
जो उतरे हैं खंजर से
रूह की गहराई में !

आग

बुझती नहीं यह आग जो, जलती है बन के अंगार
दिल का चिलमन जैसे गाता हो मोहब्बत के पैग़ाम
बनके धुआँ जब रुख़सत हुए , हम इस महफिल से
रंग उनके सुरमे का बहने लगा क्यूँ ज़ार ज़ार “

पंख

पंख लगा के आसमान में उड जाऊँ
चाहे यह मन चकोर
देख् नील गगन का उजियारा
नाचे जैसे वन में चंचल मोर!

कहे है बावरा उसे ,
फिरभी ना समझे यह मन
उड़ते बादलों से बंध जाए
रह रह कर यह दिल कि डोर !

आ जाएँ कहीं बनाये बसेरा
जब होगी शाम चहुं ओर
थम जाए कुछ पल के लिए,
जब तक ना समझे यह पागल मन चितचोर!

दोस्त

इस ज़र्रा नवाज़ि  पर मैं क्या कहूँ ,
जब कभी आपके लब्ज़ो ने फर्माया
ज़िक्र मेरा
दिल ठहर कर मचलने लगा
कि लो आ गया है किसी चमन से

वो दोस्त तेरा
जो खिला देगा गुलशन के सारे फूल यहाँ !

दूर कहीं से जब चली यह हवा
घटाओ ने थामाँ था यूँ आँचल मेरा
बारिश कि बूँदों में बरस गया
उस दोस्त कि आँखों में सारा जहाँ !

This few lines dedicated to few special friends whose words do influence me!

For these naturally got expressed while communicating with  Shaheen..http://wp.me/p1Wrvn-vl

Suraiya

Shaheen

…Of Fire & Clay.

Shilpi Mata Ke Nau Roop.

Rachna

वो लम्हे प्यार के!

  अर्जी दी थी हमने भी मगर,ना उसपर कोई करवाई  हुई ,
बैठे रहे तेरे कुचे में आकर ,उम्र यूँ गुजरती गयी,
देखते ही देखते आँखों के चंद लब्ज़ …
बसा गए सपनों का जहां,
मगर हकीकत बनने से पहले
वो चंद लब्ज़ , इतिहास में समा गए।

राह पर तेरी हम फूल बीछा गए,
इत्र के बदले अपने प्यार की कुछ बूँदें छलका गए,
इस उम्मीद में , की,
जब कभी गुजरे तुम्हारी हस्ती
इस राह से,
याद दिला  दे तम्हारे दिल को …
वो लम्हे प्यार के!

ये  हवा की नमी ,चंद बारिश की बूँदें,
गवाह रहे इस तरन्नुम के,
की ज़िन्दगी निकाल  दी  यूँ,
हमने तेरे दर पे,
जाते जाते
सजा गए  गुलशन को तेरे ,
हम  अपने रंग से!
हो सके महसूस कर लेना
वो लम्हे प्यार के!

(photo:shaansepoetry.ucoz.com)

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