यह खामोशी कैसी

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वह जो बैठे हैं
हथेली पर चंद पलों को लिए
उम्र गुज़र गयी ,तरस गयी आँखें
एक दरस के लिए
शाम सुर्ख फिर भी
फूल यूँ ही मुरझा गए

वक़्त की बेड़ियों ने बाँधी
यह खामोशी कैसी
चलो फिर इंतज़ार करे
यूँ ही चाँद का
सितारों के परे आसमान में

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सुन लो

जो सब कुछ कह दूँ
तो क्या मज़ा जीने में
समझ सको तो सुन लो
बिन कहे
उन बूंदों की सरगम
बहती है जो ख़ामोशी से
हलके से
गुनगुनाते हुए
बरसात के कुछ नग़मे
किस्से तेरी और मेरी कहानी के !

©Soumya

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मौसम की इस अदला बदली में

यूँ तो: हमने कभी  सोचा  नहीं
कि इस क़दर आप बसते हैं ज़हन में
पल  भर की खामोशी भी ना अब
सहती इस मौसम में…

मौसम की इस अदला बदली में
कई रंग फिज़ा ने  बदल दिए
कुछ पुराने पत्तों से झड़ गए
कुछ नए फूलों की  खुश्बू से खिल गए…

देखे अब क्या है
इस मौसम की ख्वाइश
कोई
मुस्कुराहट या फिर कोई नई नुमाइश
जिंदगी के मौसम कितने अजीब
कभी मौसम-ए – हिज्र
कभी मौसम – ए- दीद !

एक चाँद था ज़मीन पर

फ़लक पर जो चाँद था ,
देख् रहा था नजरें टिकाये जमीन पर
कभी बादलो के पीछे से, कभी तारों के बीच से
वो पूर्णिमा की  रात थी ,
एक चाँद आसमान पर था
एक नीचे बगीचे में ठिठुर रहा था


भूका, प्यासा तिलमिलाता
बेज़ुबान सा
अनदेखा कर गया , एक काफिला कुछ ही कदमो की  दूरी पर
जग्मगाता , टिम्टिमाता
मानो धरती पर हो रहा हो कोई
तारों का मजुम
सुगंधित फूलों के बीच
स्वादिष्ट पकवान
अर्पण हो रहे थे जो
उस आसमान के चाँद के लिए
एक चाँद था ज़मीन

पर
बस निहारता हुआ

@SoumyaV

“रंग गयी मैं तोरे रंग में,अब काहे तू सताये रे”

ना  बाँधों मोहे पीया प्रीत की डोर से
उलझन में यह नयन, मन सकुचाये
जब ना दिखे तू, तब काहे का चैन

हुई मैँ बावरी तोरी ,तू ना समझ  पाये रे

रंग गयी मैं तोरे  रंग में, अब काहे तू सताये  रे

ना तोड़ पाऊँ, ना तोसे दूर् जाऊँ
कैसो यह अनोखा बंधन हाय  रे
जले तू ,तो जलूँ मैँ
रुके तू तो: रुकूँ मैँ
चले तू  तो चलूँ मैँ

कैसे कहूँ पिया, तोसे यह बात

हुई मैँ बावरी तोरी ,तू ना समझ पाये…

रंग गयी मैं तोरे  रंग में, अब काहे तू सताये  रे

ओ ! चंद्रिका !

ओ ! चंद्रिका ! तेरे माथे की बिन्दिया है वो चाँद
नयनो में बने कजरा ,
निशा का यह घोर अन्धेरा
तेरे होठों की रंगत लाये
वह सुबह की लालिमा
चितचोर सा छुपा वो चाँद
घने कारे बादलों में सिमटा ,
जैसे ज़ुल्फों से निहारता
एक गुलाब !

ओ चंद्रिका! तड़पे मन हर पल
जागु मैँ सारी रात
तेरी शीतल छाया
जलाये मेरा मनवा
रोम रोम में अंगार….

चंद्रिका ! तुझसे ना करूँ में बात
आह भरे, मेरे हृदय की साँसें
तेरा सांवरा तो है तेरे पास,
किस से कहूँ मैँ अपने
पिया की है मुझे अब
आस ,
चंद्रिका , तेरा चाँद तो है तेरे पास.

Copyright@Soumyav2015

गुनाह

गुनाह मान कर उसने अपना रुख मोड़ लिया
हमने तो बस एक दीदार ही मांगा था!

ना मांगी थी उससे ज़िन्दगी की मोहब्बत
बस चंद लम्हों का साथ ही माँगा था

ना चांदी का महल ना सोने की चमक
हमने तो उसके इस्तकबाल का एक ही पल माँगा था

वह गए यूँ गली से गुज़र के ऐसे
हमने तो बस
उसके लहराते आँचल का झोंका ही माँगा था

गुनाह समझते है वो , सज़ा भी दी हमें
हमने तो अपनी रूह का
जलता हिस्सा माँगा था
जो बसता है उनके जिगर में प्यार से
खंजर तो हमने अपने सीने में उतारा था