अर्ज़ मेरी उसने ना सुनी,
होगा वो कुछ संगदिल सा,
एक हिज्र की मोहलत माँगी थी,
रूखसत हुई जब
उसके दर से यह ज़िंदगी।
-©Soumya
अर्ज़ मेरी उसने ना सुनी,
होगा वो कुछ संगदिल सा,
एक हिज्र की मोहलत माँगी थी,
रूखसत हुई जब
उसके दर से यह ज़िंदगी।
-©Soumya
इस दर्द ए दिल की दवा दे जा
तेरा चाँद सा मुखड़ा हमे दिखा जा
कल अमावास की रात थी
अंधकार में लिपटी , हर बात थी
गम की स्याही से लिखी
एक आवाज़ थी
कल आसमान में आएगा वो
धरती पर तुम , अंबर में वो
फिर भी …
उजाले की किरण दिखा जा
तेरा चाँद सा मुखड़ा दिखा जा
…
आज तो दीदार करा जा
तेरा चाँद सा मुखड़ा दिखा जा
ढल गया सूरज , आज शाम तन्हा है
कल रात कि चाँदनी भी मुझसे कुछ खफा है
पहलू में वो जो आए , सितारों का नगमा लिए
हमने कर लिया किनारा, उनसे नजर मोड़ के
Copyright@SoumyaV2015
गुनाह मान कर उसने अपना रुख मोड़ लिया
हमने तो बस एक दीदार ही मांगा था!
ना मांगी थी उससे ज़िन्दगी की मोहब्बत
बस चंद लम्हों का साथ ही माँगा था
ना चांदी का महल ना सोने की चमक
हमने तो उसके इस्तकबाल का एक ही पल माँगा था
वह गए यूँ गली से गुज़र के ऐसे
हमने तो बस
उसके लहराते आँचल का झोंका ही माँगा था
गुनाह समझते है वो , सज़ा भी दी हमें
हमने तो अपनी रूह का
जलता हिस्सा माँगा था
जो बसता है उनके जिगर में प्यार से
खंजर तो हमने अपने सीने में उतारा था
बुझती नहीं यह आग जो, जलती है बन के अंगार
दिल का चिलमन जैसे गाता हो मोहब्बत के पैग़ाम
बनके धुआँ जब रुख़सत हुए , हम इस महफिल से
रंग उनके सुरमे का बहने लगा क्यूँ ज़ार ज़ार “