चंद पल सुकून के खोजता रहा उम्र भर
कभी अपने पैरों के निशाँ पोंछ कर
कभी परिंदे सी उड़ान भर कर
दूर दराज़ जंगलों में
बड़ी बड़ी इमारतों के मंज़िलों पर
खोती गयी मंज़िल अपनी
इस पशोपेश में
भूल गया
झाँकना अपने ही भीतर
ज़िन्दगी के घुमते पहिये संग
hindi poems
यह खामोशी कैसी
वह जो बैठे हैं
हथेली पर चंद पलों को लिए
उम्र गुज़र गयी ,तरस गयी आँखें
एक दरस के लिए
शाम सुर्ख फिर भी
फूल यूँ ही मुरझा गए
वक़्त की बेड़ियों ने बाँधी
यह खामोशी कैसी
चलो फिर इंतज़ार करे
यूँ ही चाँद का
सितारों के परे आसमान में
©All rights reserved SoumyaVilekar
कैसे कहे चाँद से
कैसे कहे चाँद से
रात की चांदनी उससे अलग नहीं
चाहे हो दिन या सितारों का मज़मा
रौशनी रूह की
जलती है अंदर ही
©Soumya
जुबां हमारी ना समझ सका है कोई
आँखों की गहराई
जानने की
फुर्सत किसी को नहीं
असर ज़रा नहीं होता
क्या कहे ऐसे इश्क़ का
असर उसको ज़रा नहीं होता
कर दी फना हमने अपनी रूह
फिर भी असर ज़रा नहीं होता
हम अर्ज़ करते हैं महफ़िलो में
ग़ज़ल उसके नाम की
कभी सूफियाना कलम से
कभी रूमानी रंग की
तो चाँद हैरान नहीं होता
क्या कहे ऐसे इश्क़ का
असर उसको ज़रा नहीं होता
उसके लब्ज़ नहीं कहते जुबां से
दबा कर चिंगारी
क्या कहे ऐसे इश्क़ का
असर उसको ज़रा नहीं होता
![]() |
soumya vilekar
about.me/soumya.vilekar
|
|
यह दीवारें
क्या लिखा है
दीवारों और दरख्तों पर
कुछ किस्से
कुछ सबूत
उस पुराने इतिहास की
जिसकी न मैं गवाह ना तुम
रंग उतरे इन स्तंभों पर
कई कहानियाँ जागती
इधर उधर
रात के पहर
अनायास ही नज़र पड़ी जब उन पर
सोचने लगा मन
क्या कहना चाहती है
यह दीवारें सालों से खड़ी
जीती जागती ,
मूक दर्शक बनकर !
एक ख्वाब है
एक ख्वाब है :
एक पल का
जब साथ हो आपका
किसी ठंड सी ठिठुरती रात में
बातों का फलसफा लिए
कुछ हम कहे
कुछ आप कहे
चाँद जब दिखे आसमान में…
एक पल जिये
क्या कभी यह दिन आएगा
क्या मन एक पल जी पायेगा
वक्त के तरकश से
क्या कभी यह तीर निकाल पायेगा?
एक चाँद था ज़मीन पर
फ़लक पर जो चाँद था ,
देख् रहा था नजरें टिकाये जमीन पर
कभी बादलो के पीछे से, कभी तारों के बीच से
वो पूर्णिमा की रात थी ,
एक चाँद आसमान पर था
एक नीचे बगीचे में ठिठुर रहा था …
भूका, प्यासा तिलमिलाता
बेज़ुबान सा
अनदेखा कर गया , एक काफिला कुछ ही कदमो की दूरी पर
जग्मगाता , टिम्टिमाता
मानो धरती पर हो रहा हो कोई
तारों का मजुम
सुगंधित फूलों के बीच
स्वादिष्ट पकवान
अर्पण हो रहे थे जो
उस आसमान के चाँद के लिए–
एक चाँद था ज़मीन
पर
बस निहारता हुआ
तेरा चाँद सा मुखड़ा दिखा जा
इस दर्द ए दिल की दवा दे जा
तेरा चाँद सा मुखड़ा हमे दिखा जा
कल अमावास की रात थी
अंधकार में लिपटी , हर बात थी
गम की स्याही से लिखी
एक आवाज़ थी
कल आसमान में आएगा वो
धरती पर तुम , अंबर में वो
फिर भी …
उजाले की किरण दिखा जा
तेरा चाँद सा मुखड़ा दिखा जा
…
आज तो दीदार करा जा
तेरा चाँद सा मुखड़ा दिखा जा
ओ ! चंद्रिका !
ओ ! चंद्रिका ! तेरे माथे की बिन्दिया है वो चाँद
नयनो में बने कजरा ,
निशा का यह घोर अन्धेरा
तेरे होठों की रंगत लाये
वह सुबह की लालिमा
चितचोर सा छुपा वो चाँद
घने कारे बादलों में सिमटा ,
जैसे ज़ुल्फों से निहारता
एक गुलाब !
ओ चंद्रिका! तड़पे मन हर पल
जागु मैँ सारी रात
तेरी शीतल छाया
जलाये मेरा मनवा
रोम रोम में अंगार….
चंद्रिका ! तुझसे ना करूँ में बात
आह भरे, मेरे हृदय की साँसें
तेरा सांवरा तो है तेरे पास,
किस से कहूँ मैँ अपने
पिया की है मुझे अब
आस ,
चंद्रिका , तेरा चाँद तो है तेरे पास.
Copyright@Soumyav2015