लिहाफ

रफ्ता रफ्ता यह ख्याल आता है दिल में
इस गुलाबी ठण्ड के ठिठुरते पलों में
सिली सिली यादों का एक मखमली लिहाफ
ओढ़ लूँ
कुछ पल के लिए

कुछ सेंक लूँ, बर्फ से हालत
कुछ ताप लूँ ,अपने जज़्बात
फिर मिलते है ,अगले मौसम में
लिए एक नया तारकशी का लिहाफ

सुन लो

जो सब कुछ कह दूँ
तो क्या मज़ा जीने में
समझ सको तो सुन लो
बिन कहे
उन बूंदों की सरगम
बहती है जो ख़ामोशी से
हलके से
गुनगुनाते हुए
बरसात के कुछ नग़मे
किस्से तेरी और मेरी कहानी के !

©Soumya

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हिज्र

अर्ज़ मेरी उसने ना सुनी,
होगा वो कुछ संगदिल सा,
एक हिज्र की मोहलत माँगी थी,
रूखसत हुई जब
उसके दर से यह ज़िंदगी।

-©Soumya

एक ख्वाब है

एक ख्वाब है :
एक पल का
जब साथ हो आपका
किसी ठंड सी  ठिठुरती रात में
बातों का फलसफा लिए
कुछ हम कहे
कुछ आप कहे
चाँद जब दिखे आसमान में…
एक पल जिये
क्या कभी यह दिन आएगा
क्या  मन एक पल  जी पायेगा
वक्त के तरकश  से
क्या कभी यह तीर निकाल पायेगा?

उड़ान

उस किवाड़ के खुलते ही मानो
जिंदगी बेगैरत  हो गयी
तिजोरी में बंद थी अबतलक
अब खुली किताब बन गयी

अक‍सर चार दीवारों
में कैद इनसान रेह्ते हैं
परिंदों कि माने
तो ख्वाइशें अब बेहिसाब हो गयी

उस नीले आसमान ओ देख्
अब मन बेकाबू हो चला
ऊँची उड़ान कि
अब फितरत हो गयी

कैफियत

अब किससे करे गिला, किस से करे शिकायत
गैरों ने माना अपना, अपनों ने की नफ़रत…
अब ना कोई उम्मीद, ना कोई मोहब्बत
जज़्बात ए इश्क में, हम बन गए, एक कैफियत

अपने अपने हिस्से का आसमान

वो नीला आसमान ,
कुछ तेरा , कुछ मेरा
बाँट लिया आपस में
हमने अपने हिस्से का आसमान
कई रंग के ख्वाब यहाँ …
जीने के हजारों मक़ाम…

तेरी जेब में दुनिया को खरीदने का सारा सामान
मैंने भी जोड़े चंद सिक्के ,
अपनाने कुछ ऐश ओ आराम ..

पर वो शक़्स रहता जो
खुले आसमान के तले
ना जुटा पाया कुछ सामान
ना पहचाने दुनिया उसे ,
ना अपनाये अपनों में कहाँ

छीन गयी जिसकी
एक बिघा ज़मीन
ढोये वो बोझ, गैरों का यहाँ …
वो राह् पर भूकाबैठा …
तू चटकारे लगाये यहाँ …

क्या खूब जिया तू इनसान
कैसा यह फ़ासला …
इनसान …तू
इनसान से जुदा यहाँ !

उस अनपढ़ , के हाथों
ना दी किसी ने एक
कलम और किताब
छीन लिया बचपन
थमा दी लाठी
दूर् कर
भेद कर
अलग कर
इनसान को ,
इनसान से यहाँ…
बस
बाँट लिया आपस में हमने
अपने अपने हिस्से का आसमान !

रंगरेज

तक़दीर मेरी क्या रंग लाती है
तेरे दर पर आने के बाद
तारे गिन गिन हो गई सुबह
कहता यह दिल
मत कर नादानियाँ…

वो थाम ले जो हाथ तेरा
अंबर तक चले जाना
जो ना नजर मिलाये तो
चाँद को धरती पर बुला लाना…

आँखों में ख्वाब  बेशुमार
हलका सा  खुमार
ग़र हम है तेरे रंगरेज
तुझ पर भी चदा होगा
मोहब्बत का बुखार

सैलाब

तड़पता है दिल ,ऐ साथी ,
जो तीर तीखे नुकीले निकले तेरी  ज़ुबान से
दो प्यार के बोल , पे तेरे
लूटा दिया हमने अपना जहान यह
फिर कब समझोगे, ऐ हमसफर
मेरी मंद मुस्कुराहट को
छिपा जाती है जो,
आँसुओं के सैलाब को

“रंग गयी मैं तोरे रंग में,अब काहे तू सताये रे”

ना  बाँधों मोहे पीया प्रीत की डोर से
उलझन में यह नयन, मन सकुचाये
जब ना दिखे तू, तब काहे का चैन

हुई मैँ बावरी तोरी ,तू ना समझ  पाये रे

रंग गयी मैं तोरे  रंग में, अब काहे तू सताये  रे

ना तोड़ पाऊँ, ना तोसे दूर् जाऊँ
कैसो यह अनोखा बंधन हाय  रे
जले तू ,तो जलूँ मैँ
रुके तू तो: रुकूँ मैँ
चले तू  तो चलूँ मैँ

कैसे कहूँ पिया, तोसे यह बात

हुई मैँ बावरी तोरी ,तू ना समझ पाये…

रंग गयी मैं तोरे  रंग में, अब काहे तू सताये  रे