ना बाँधों मोहे पीया प्रीत की डोर से
उलझन में यह नयन, मन सकुचाये
जब ना दिखे तू, तब काहे का चैन
हुई मैँ बावरी तोरी ,तू ना समझ पाये रे
रंग गयी मैं तोरे रंग में, अब काहे तू सताये रे
ना तोड़ पाऊँ, ना तोसे दूर् जाऊँ
कैसो यह अनोखा बंधन हाय रे
जले तू ,तो जलूँ मैँ
रुके तू तो: रुकूँ मैँ
चले तू तो चलूँ मैँ
कैसे कहूँ पिया, तोसे यह बात
हुई मैँ बावरी तोरी ,तू ना समझ पाये…
रंग गयी मैं तोरे रंग में, अब काहे तू सताये रे