जुबां हमारी ना समझ सका है कोई
आँखों की गहराई
जानने की
फुर्सत किसी को नहीं

यादों के झरोखे

यादों के झरोखे में
सिमटकर हम ले चले
चंद किस्से प्यार भरे
एक सुनेहरा दिन,
कुछ
चाँदनी रातें
वह गीली रेत में
चलना …तारे  गिन गिन…

किस पल आए फिर ऐसा समा
लहरों में छुपा लूँ अपना जहाँ
चंद मामूली बातें
कुछ अनकहे किस्से …

मुद्दत से राह् देखे यह मन
कब फिर शुरु होगा
मिलों पुराना यह स़फर

अधूरा जो रह गया था
किसी मोड़ पर
आओ चले फिर से
उसी यादों के झरोके पर …

@SoumyaV

 

उम्र

अल्फाज की गहराई,
नहीं मोहताज
उम्र के दस्तावेज पर
लब्ज करते है बयान ये 
वो दर्द और किस्से
जो उतरे हैं खंजर से
रूह की गहराई में !

गुनाह

गुनाह मान कर उसने अपना रुख मोड़ लिया
हमने तो बस एक दीदार ही मांगा था!

ना मांगी थी उससे ज़िन्दगी की मोहब्बत
बस चंद लम्हों का साथ ही माँगा था

ना चांदी का महल ना सोने की चमक
हमने तो उसके इस्तकबाल का एक ही पल माँगा था

वह गए यूँ गली से गुज़र के ऐसे
हमने तो बस
उसके लहराते आँचल का झोंका ही माँगा था

गुनाह समझते है वो , सज़ा भी दी हमें
हमने तो अपनी रूह का
जलता हिस्सा माँगा था
जो बसता है उनके जिगर में प्यार से
खंजर तो हमने अपने सीने में उतारा था

मुक्ति

किस मुक्ति की बात करे है तू
जब मन ही नहीं मुक्त संसार से
कहाँ जाए काशी , काबा
जब फँसा हो मन इस मायाजाल में …

मुक्त कभी नहीं ,तू हो सकता
अगर त्याग दिया यह वेश भी
वरना कोइ संत , सूफी ना कहता
जो है, बस यही सही …
घाट घाट का पानी पीया
फिर भी ना जाना यह बात अभी ?
मरने से मुक्ति नहीं मिलती, ऐ राहगीर .
जब तक ना बने ,उन्मुक्त,तू ही !

 

 

 

arzi

naa meine dekha raqeeb, naa jaana apna naseeb
bas is adne se dil ki khwaish , puri kar do ae mujeeb,
ban kar haqeem , le aao woh aisi dawa
ki gum ho jaaye, dil ke saare marz yaheen!

मोती

बिखरे हैं कई मोती निकल कर सीप से

सागर के किनारे , लहरों में पड़े

कुछ चुनिंदा मोती, मैं चुन लूँ
बनाकर माला उन्हें पिरों लूँ।
रह जाएंगे यूँ वह दिल के करीब
निखर जाएगी जुस्तजू
सुनकर उनका बयां
 कितने अनमोल ,खुशनसीब
है वह जिन्होंने लिखी
मोहब्बत की दास्तां .

चल मेरे चितचोर!

देखते हैं ख्वाब हम खुली आँखों से
यहाँ से दूर , उस आसमान के परे।
जहां ना छु पाये इस दुनिया की बातें
ना पहुंचे किसी कि आवाज़ कभी।

चल उड़े उस ओर ,
जहां ना हो कोई अन्धकार ना सवेरा
हर एक क्षण हो एक जैसा
मुझमे तुम,और तुझमे मुझे
बसाये हो जैसा।

रेगिस्तान की सुनहरी रेत
हिमालय की सर्द हवाएं
पहाड़ियों कि हरियाली
समुद्र की अनगिनत लहरें
सभी को ले चले
उस सुनहरी दुनिया कि ओर
जहां हम ओर तुम बनाये
एक नया जहां
बादलों के बीच ,
चल मेरे चितचोर !

ज़ुबान

जब एक झलक दिखी उस चाँद की
तो: दिल में एक  टीस उठी,
जागे हुए अरमान मचल  गए
सोयी सी  तक़दीर जाग उठी!

बंद करके पंखुरियों को
जब हम ने बना ली अपनी ज़ुबान
तरन्नुम प्यार के गाने लगे
यह धरती और आसमान!

 

पंख

पंख लगा के आसमान में उड जाऊँ
चाहे यह मन चकोर
देख् नील गगन का उजियारा
नाचे जैसे वन में चंचल मोर!

कहे है बावरा उसे ,
फिरभी ना समझे यह मन
उड़ते बादलों से बंध जाए
रह रह कर यह दिल कि डोर !

आ जाएँ कहीं बनाये बसेरा
जब होगी शाम चहुं ओर
थम जाए कुछ पल के लिए,
जब तक ना समझे यह पागल मन चितचोर!