पंख लगा के आसमान में उड जाऊँ
चाहे यह मन चकोर
देख् नील गगन का उजियारा
नाचे जैसे वन में चंचल मोर!
कहे है बावरा उसे ,
फिरभी ना समझे यह मन
उड़ते बादलों से बंध जाए
रह रह कर यह दिल कि डोर !
आ जाएँ कहीं बनाये बसेरा
जब होगी शाम चहुं ओर
थम जाए कुछ पल के लिए,
जब तक ना समझे यह पागल मन चितचोर!