कश्मीर

वह पृष्ठभूमि ,है हमारी तक़दीर
सियासत की खुनी लड़ाई में
ज़िन्दगी की बन गयी भद्दी तस्वीर
गर बहा ले जाए झेलम की लहरें
इन नफरत के शोलों को
फिर से ऐ! फ़िरदौस
बन जाएगी जन्नत यह तुम्हारी ज़मीन!

मनुष्य

उस काव्य की  रचना ना हुइ कभी
जिसमें श्रेष्ठ, कभी,
कोई जाति हुई
ना रंगभेद के विचार लिखे कहीं
मनुष्य धर्म सर्वश्रेष्ठ
यही संतों की वाणी रही …

फिर क्यूँ आग से खेले मनुष्य
भूलकर अपने आचारविचार
बना दिया युद्धभूमि का आँगन
जिसपर बसता था इनसान …

चल मेरे चितचोर!

देखते हैं ख्वाब हम खुली आँखों से
यहाँ से दूर , उस आसमान के परे।
जहां ना छु पाये इस दुनिया की बातें
ना पहुंचे किसी कि आवाज़ कभी।

चल उड़े उस ओर ,
जहां ना हो कोई अन्धकार ना सवेरा
हर एक क्षण हो एक जैसा
मुझमे तुम,और तुझमे मुझे
बसाये हो जैसा।

रेगिस्तान की सुनहरी रेत
हिमालय की सर्द हवाएं
पहाड़ियों कि हरियाली
समुद्र की अनगिनत लहरें
सभी को ले चले
उस सुनहरी दुनिया कि ओर
जहां हम ओर तुम बनाये
एक नया जहां
बादलों के बीच ,
चल मेरे चितचोर !

श्रद्धा

अगर लगे अंधकारमय है पथ जीवन का,
दूर तक ना हो रोशनी का कोई निशान ,
डर ना नहीं बस चलते रहना ऐ ! इंसान
एक किरण  भी ले जायेगी तुम्हे तारों के पार।

मन में रख तू विश्वास बनाये
गिर कर भी तू संभलना जाने
फिर काहे का डर सताए
इस पथ तो है वीरों के साए ..

सच्चाई की इस डगर पर
लाखों ने  अपने शीश झुकाए,
अपने मंजिल की ओर बढा  कर कदम
चलते जा तू यूँ ही निरंतर …
दिखेगा लक्ष्य तुझे
अगर रहे नज़र
अटल निश्चल !

अनदेखी सी शक्ति होगी ,तेरे  हर कदम  के तले ,
जो उठा लेगी हाथों में ,अगर कहीं कांटे मिले,
रख कर यह श्रद्धा का दीपक, हाथ में तू चला अगर ,
दूर नहीं कोई भी मंजिल, पहुंचेगा तू , सितारों के परे …