मनुष्य

उस काव्य की  रचना ना हुइ कभी
जिसमें श्रेष्ठ, कभी,
कोई जाति हुई
ना रंगभेद के विचार लिखे कहीं
मनुष्य धर्म सर्वश्रेष्ठ
यही संतों की वाणी रही …

फिर क्यूँ आग से खेले मनुष्य
भूलकर अपने आचारविचार
बना दिया युद्धभूमि का आँगन
जिसपर बसता था इनसान …