सोच

बेवजह ही धड़कते है अरमान
बेवजह ही हम मुस्कुरा  जाते

जब भी आता है होंठों पर नाम तेरा

जाने क्या सोच कर हम  इतराते
तुम इस बात से अनजान
कोसों दूर् …
उस धुंद की चादर तले

अपने चाय के प्याले को निहारते
जिसके किनारे पर आज भी

है मौजूद

चंद निशान हमारे