सुप्रभात !

बैठे है यूँ राह् तकतें हुए समय के झरोखे से
कब होगा सूर्य का आगमन इस अन्धेरे जीवन में
एक किरण से भी हो जायेगा वातावरण यह प्रज्वलित
एक ज्योति ही काफ़ी है जलते रहने के लिए
जब उम्मीद हो गयी हो ओझल एवम्‌ राहहीन !

वक्त के घेरे से बच ना सका कोइ
जो बनाकर राजा राज करे उसे भी यह लेता है जीत
इस समय के पन्नो में कई जाते है बीत यह दिन
सारांश उस का वही पाये जो रहता है राह् पर अडिग

एक आशा में देखे कोई स्वप्न
जिसमें हो जाए पूरे चित्रों के रंग
अलग अलग कलम उठाता हर
प्रयत्न करे निरंतर !

आखिरकार वह क्षण आए जिसका करे वह इंतज़ार
समय के सुप्रभात का करे वह आदर सम्मान
ऐसे भोर कि बेला का जाने वह मूल्य अनमोल
जिसकी सुंदर आभा से जीवन हो जाए आत्मविभोर!

PHOTOCREDIT:www.trekearth.com

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