हिज्र अर्ज़ मेरी उसने ना सुनी, होगा वो कुछ संगदिल सा, एक हिज्र की मोहलत माँगी थी, रूखसत हुई जब उसके दर से यह ज़िंदगी। -©Soumya इसे शेयर करे:TwitterFacebookEmailपसंद करें लोड हो रहा है... Related
सीने से लगा कर अपने……..अब सहारा दो हमें ये इश्क़ बहुत भारी सा लगता है…बंटवारा दो हमें ये झील सी………गहरी गहरी………तुम्हारी आंखें मैं डूब रहा हूँ इन आँखों में…..…..अब बचा लो हमें…!! https://aktiwari1989.blogspot.com/2021/04/blog-post_840.html प्रतिक्रिया
बहुत उम्दा
बेहतरीन रचना
BHAUT HI KHUBSURAT
bahot shundar rachna
सीने से लगा कर अपने……..अब सहारा दो हमें
ये इश्क़ बहुत भारी सा लगता है…बंटवारा दो हमें
ये झील सी………गहरी गहरी………तुम्हारी आंखें
मैं डूब रहा हूँ इन आँखों में…..…..अब बचा लो हमें…!!
https://aktiwari1989.blogspot.com/2021/04/blog-post_840.html