तड़पता है दिल ,ऐ साथी ,
जो तीर तीखे नुकीले निकले तेरी ज़ुबान से
दो प्यार के बोल , पे तेरे
लूटा दिया हमने अपना जहान यह
फिर कब समझोगे, ऐ हमसफर
मेरी मंद मुस्कुराहट को
छिपा जाती है जो,
आँसुओं के सैलाब को
महीना: मई 2015
“रंग गयी मैं तोरे रंग में,अब काहे तू सताये रे”
ना बाँधों मोहे पीया प्रीत की डोर से
उलझन में यह नयन, मन सकुचाये
जब ना दिखे तू, तब काहे का चैन
हुई मैँ बावरी तोरी ,तू ना समझ पाये रे
रंग गयी मैं तोरे रंग में, अब काहे तू सताये रे
ना तोड़ पाऊँ, ना तोसे दूर् जाऊँ
कैसो यह अनोखा बंधन हाय रे
जले तू ,तो जलूँ मैँ
रुके तू तो: रुकूँ मैँ
चले तू तो चलूँ मैँ
कैसे कहूँ पिया, तोसे यह बात
हुई मैँ बावरी तोरी ,तू ना समझ पाये…
रंग गयी मैं तोरे रंग में, अब काहे तू सताये रे
सोच
बेवजह ही धड़कते है अरमान
बेवजह ही हम मुस्कुरा जाते
जब भी आता है होंठों पर नाम तेरा
जाने क्या सोच कर हम इतराते
तुम इस बात से अनजान
कोसों दूर् …
उस धुंद की चादर तले
अपने चाय के प्याले को निहारते
जिसके किनारे पर आज भी
है मौजूद
चंद निशान हमारे