खोज चंद पल सुकून के खोजता रहा उम्र भर कभी अपने पैरों के निशाँ पोंछ कर कभी परिंदे सी उड़ान भर कर दूर दराज़ जंगलों में बड़ी बड़ी इमारतों के मंज़िलों पर खोती गयी मंज़िल अपनी इस पशोपेश में भूल गया झाँकना अपने ही भीतर ज़िन्दगी के घुमते पहिये संग Soumya