जुबां हमारी ना समझ सका है कोई
आँखों की गहराई
जानने की
फुर्सत किसी को नहीं

सुन लो

जो सब कुछ कह दूँ
तो क्या मज़ा जीने में
समझ सको तो सुन लो
बिन कहे
उन बूंदों की सरगम
बहती है जो ख़ामोशी से
हलके से
गुनगुनाते हुए
बरसात के कुछ नग़मे
किस्से तेरी और मेरी कहानी के !

©Soumya

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एक ख्वाब है

एक ख्वाब है :
एक पल का
जब साथ हो आपका
किसी ठंड सी  ठिठुरती रात में
बातों का फलसफा लिए
कुछ हम कहे
कुछ आप कहे
चाँद जब दिखे आसमान में…
एक पल जिये
क्या कभी यह दिन आएगा
क्या  मन एक पल  जी पायेगा
वक्त के तरकश  से
क्या कभी यह तीर निकाल पायेगा?

रंगरेज

तक़दीर मेरी क्या रंग लाती है
तेरे दर पर आने के बाद
तारे गिन गिन हो गई सुबह
कहता यह दिल
मत कर नादानियाँ…

वो थाम ले जो हाथ तेरा
अंबर तक चले जाना
जो ना नजर मिलाये तो
चाँद को धरती पर बुला लाना…

आँखों में ख्वाब  बेशुमार
हलका सा  खुमार
ग़र हम है तेरे रंगरेज
तुझ पर भी चदा होगा
मोहब्बत का बुखार

सैलाब

तड़पता है दिल ,ऐ साथी ,
जो तीर तीखे नुकीले निकले तेरी  ज़ुबान से
दो प्यार के बोल , पे तेरे
लूटा दिया हमने अपना जहान यह
फिर कब समझोगे, ऐ हमसफर
मेरी मंद मुस्कुराहट को
छिपा जाती है जो,
आँसुओं के सैलाब को

घोंसला

आज तूफान आया था घर के बरामदे मेँ
उजड़ गया तिनकों का महल एक ही झोंके मेँ
उस चिड़िया की आवाज़ आज ना सुनायी दी
कई दिनो से
शायद
फिर से जूट गयी बेचारी सब सँवारने मेँ

बनते बिगड़ते हौंसले से बना फिर वो घोंसला
पर किसी को ना दिखा चिड़िया का वो टूटता पंख नीला
अब कैसे वो उड़े नील गगन में
जहाँ बसते थे उसके अरमान !
सबर का इम्तिहान उसने भी दिया
बचा लिया घरौंदा…
मगर कुर्बान ख़ुद को किया

कलयुग का अन्धकार

दिशाहीन है आज का समाज

बर्बरता का है भूचाल

इन भटकते राहों में

खो गया है एक इंसान।

लिए जन्म चौरासी हज़ार

सीखा न कुछ एक बार

रह गया बनकर एक भक्षक

करता रहा नरसंहार

अंधेर बना कर दुनिया को
उजाड़ दिया सबका संसार
कहीं भूक, बेरोज़गारी से
कभी राह में अत्याचारी से
किसी रात के दबे हज़ारों ज़ख़्म
कुरेद दिए तूने अपने
अश्लीलता की कटारी से।

नित नए पुराने हथकंडे
तूने अपनाये कपट सहारे से
भूल गया तू इस जीवन का
मक़सद, इस बाजार में ,
बेच दिए तूने सारे बंधन
किया नग्न मानव जात को

शर्मसार हुआ है इश्वर
तेरे इस अज्ञान कुकर्म  से
जाने कैसी घडी अब आये
यह कलयुग का अन्धकार है!

वक़्त

वक़्त किसी के ठहरते न ठहरा
बंद मुट्ठी से जैसे रेत फ़िसले ज़रा
हम ख़ामोशी में यूँ अकेले रह गए
कहानियां बनती गयी हमारे चबूतरे पे!

ज़ुबान

जब एक झलक दिखी उस चाँद की
तो: दिल में एक  टीस उठी,
जागे हुए अरमान मचल  गए
सोयी सी  तक़दीर जाग उठी!

बंद करके पंखुरियों को
जब हम ने बना ली अपनी ज़ुबान
तरन्नुम प्यार के गाने लगे
यह धरती और आसमान!

 

सुप्रभात !

बैठे है यूँ राह् तकतें हुए समय के झरोखे से
कब होगा सूर्य का आगमन इस अन्धेरे जीवन में
एक किरण से भी हो जायेगा वातावरण यह प्रज्वलित
एक ज्योति ही काफ़ी है जलते रहने के लिए
जब उम्मीद हो गयी हो ओझल एवम्‌ राहहीन !

वक्त के घेरे से बच ना सका कोइ
जो बनाकर राजा राज करे उसे भी यह लेता है जीत
इस समय के पन्नो में कई जाते है बीत यह दिन
सारांश उस का वही पाये जो रहता है राह् पर अडिग

एक आशा में देखे कोई स्वप्न
जिसमें हो जाए पूरे चित्रों के रंग
अलग अलग कलम उठाता हर
प्रयत्न करे निरंतर !

आखिरकार वह क्षण आए जिसका करे वह इंतज़ार
समय के सुप्रभात का करे वह आदर सम्मान
ऐसे भोर कि बेला का जाने वह मूल्य अनमोल
जिसकी सुंदर आभा से जीवन हो जाए आत्मविभोर!

PHOTOCREDIT:www.trekearth.com

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