दिशाहीन है आज का समाज
बर्बरता का है भूचाल
इन भटकते राहों में
खो गया है एक इंसान।
लिए जन्म चौरासी हज़ार
सीखा न कुछ एक बार
रह गया बनकर एक भक्षक
करता रहा नरसंहार
अंधेर बना कर दुनिया को
उजाड़ दिया सबका संसार
कहीं भूक, बेरोज़गारी से
कभी राह में अत्याचारी से
किसी रात के दबे हज़ारों ज़ख़्म
कुरेद दिए तूने अपने
अश्लीलता की कटारी से।
नित नए पुराने हथकंडे
तूने अपनाये कपट सहारे से
भूल गया तू इस जीवन का
मक़सद, इस बाजार में ,
बेच दिए तूने सारे बंधन
किया नग्न मानव जात को
तूने अपनाये कपट सहारे से
भूल गया तू इस जीवन का
मक़सद, इस बाजार में ,
बेच दिए तूने सारे बंधन
किया नग्न मानव जात को
शर्मसार हुआ है इश्वर
तेरे इस अज्ञान कुकर्म से
जाने कैसी घडी अब आये
यह कलयुग का अन्धकार है!