चंद पल सुकून के खोजता रहा उम्र भर
कभी अपने पैरों के निशाँ पोंछ कर
कभी परिंदे सी उड़ान भर कर
दूर दराज़ जंगलों में
बड़ी बड़ी इमारतों के मंज़िलों पर
खोती गयी मंज़िल अपनी
इस पशोपेश में
भूल गया
झाँकना अपने ही भीतर
ज़िन्दगी के घुमते पहिये संग
ghazals
कैसे कहे चाँद से
कैसे कहे चाँद से
रात की चांदनी उससे अलग नहीं
चाहे हो दिन या सितारों का मज़मा
रौशनी रूह की
जलती है अंदर ही
©Soumya
सुन लो
जो सब कुछ कह दूँ
तो क्या मज़ा जीने में
समझ सको तो सुन लो
बिन कहे
उन बूंदों की सरगम
बहती है जो ख़ामोशी से
हलके से
गुनगुनाते हुए
बरसात के कुछ नग़मे
किस्से तेरी और मेरी कहानी के !
©Soumya
हिज्र
अर्ज़ मेरी उसने ना सुनी,
होगा वो कुछ संगदिल सा,
एक हिज्र की मोहलत माँगी थी,
रूखसत हुई जब
उसके दर से यह ज़िंदगी।
-©Soumya
तेरा चाँद सा मुखड़ा दिखा जा
इस दर्द ए दिल की दवा दे जा
तेरा चाँद सा मुखड़ा हमे दिखा जा
कल अमावास की रात थी
अंधकार में लिपटी , हर बात थी
गम की स्याही से लिखी
एक आवाज़ थी
कल आसमान में आएगा वो
धरती पर तुम , अंबर में वो
फिर भी …
उजाले की किरण दिखा जा
तेरा चाँद सा मुखड़ा दिखा जा
…
आज तो दीदार करा जा
तेरा चाँद सा मुखड़ा दिखा जा